DCG NEWS :- धान कटाई के पश्चात् बचे पैरा को किसान भाई लोग काटना जरूरी नहीं समझते, फसल के ऐसे अधकटे हिस्से को अनुपयोगी मानते हैं और नई फसल की तैयारी कि लिए खेत में शेष पैरा (फसल अवशेष) को जला देते हैं। पैरा जलाने से कृषि पर्यावरण और स्वास्थ्य पर दुषप्रभाव पडता है। वही पैरा (फसल अवशेष) के समूचित प्रबंधन से मृदा एवं पर्यावरणीय स्वास्थ्य संरक्षण संभव है।
DCG NEWS :- “पैरा जलाने के दुषपरिणाम पैरा जलाने से वायु मण्डलीय प्रदुषण बढता है, इसके जलने से कार्बन मोनो-ऑक्साईड,मिथेन, पॉलीसाइक्लीक एरोमैटिक हाईड्रोकार्बन और वाष्पशील कार्बनिक यौगिक जैसी विषैली गैसो का उत्सर्जन होता है। इस प्रदुषण के आसपास के क्षेत्रों में स्मौग या धुम्र कोहरे की मोटी परत तैयार होती है जो स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक है। इससे स्वास्थ्य पर विपरित प्रभाव पडते हैं जैसे कि, त्वचा और आंखो में जलन से लेकर गंभीर हृदय और स्वास्थ्य संबंधी रोग देखने को मिलते हैं। पैरा जलाने से मृदा पर भी विपरित प्रभाव पडता है। यह मृदा में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम जैसे आवश्यक पोषक तत्वों को नष्ट कर देता है। पैरा जलाने से मृदा का तापमान बढ़ता है, जिससे मृदा में उपलब्ध सूक्ष्म जीव विस्थापित या नष्ट हो जाते हैं।
DCG NEWS :- पैरा का उचित प्रबंधन पैरा से आर्गेनिक खाद बनाया जा सकता है। इससे मृदा की उर्वरक शक्ति भी बढ़ती है। आधुनिक यंत्र जैसे कि मल्चर, हैप्पी सीडर तथा सुपर सीडर का उपयोग करके पैरा को मिट्टी में मिला जा सकता है या बेलर का उपयोग करके पैरा का बंडल तैयार कर चारा के रूप में संग्रहित किया जा सकता है। पैरा का उपयोग कर विभिन्न प्रकार के उत्पाद भी बनाया जा सकता है जैसे कि डिस्पोजल प्लेट, कप, ग्रामीण क्षेत्रों में छप्पर निर्माण, पैकेजिंग सामग्री, कागज तैयार करने के लिए, बायो एथेनॉल तैयार करने के लिए एवं प्लाई उद्योग में भी उपयोग किया जा सकता है। बड़े उद्योगो में इंधन के रूप में भी प्रयोग किया जा सकता है। धान के पैरा का यूरिया से उपचार करके पशु चारे के रूप में उपयोग कर सकते हैं।
पैरा से खाद कैसे बनाएँ: किसान भाई पैरा के निस्तारण के लिए अब डी-कंपोजर का उपयोग कर सकते हैं। य
DCG NEWS :- ह एक किफायती और पर्यावरणीय रुप से सुरक्षित तरीका है। इस विधि में 200 लीटर पानी में 2 किलो गुड़ और 2 किलो चने का बेसन मिलाकर एक घोल तैयार किया जाता है। इस घोल में 20 ग्राम बायो डी-कंपोजर मिलाकर 2-3 दिन तक दिन में दो बार 5-10 मिनट के लिए चलाते रहना चाहिए। कुछ दिनों बाद घोल का रंग दूधिया हो जाएगा और 10 दिन बाद इसमें बुलबुले उठने लगेंगे, जिसका मतलब है कि कल्चर तैयार हो गया है। इस तैयार घोल को 10 लीटर की मात्रा में 1 एकड़ धान की पैरा पर छिड़काव करने से पैरा को खाद में परिवर्तित किया जा सकता है। कृषि विभाग के द्वारा जिले के सभी किसान भाईयों के लिए ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी के माध्यम से वेस्ट डी-कम्पोजर का वितरण कराया गया है। सभी किसान भाईयों से अनुरोध है कि, संबंधित ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी से सम्पर्क कर बायो डी-कंपोजर प्राप्त करें।
DCG NEWS :- इस विधि से पैरा जलाने से होने वाले प्रदूषण से बचा जा सकता है और साथ ही मिट्टी की उर्वरता भी बढ़ती है। जिले में धान की कटाई पश्चात् किसान खेतों में पड़े पैरा को जला देते हैं। इससे होने वाले नुकसान जैसे कि वायु प्रदूषण एवं खेत की उर्वरा शक्ति में कमी को देखते हुए, कलेक्टर श्री दीपक सोनी जी के निर्देशानुसार कृषि विभाग द्वारा किसानों से पैरा न जलाने की अपील की गई है। साथ ही पैरा जलाने के बजाय किसानों को उपरोक्तानुसार उचित रूप से प्रबंधन करने हेतु अपील किया गया है। जिससे पर्यावरण के साथ ही मानव स्वास्थ्य सुरक्षा भी सुनिश्चित् किया जा सकता है।

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